Lekhika Ranchi

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लोककथा संग्रह 2

लोककथ़ाएँ


सुनहरी हंस: जर्मनी की लोक-कथा

एक आदमी के तीन बेटे थे। सबसे छोटे को वे डमलिंग पुकारते थे। पूरा परिवार हर वक्‍त उससे चिढ़ता था और उसके साथ दुर्व्यवहार करता था। एक दिन बड़े बेटे के दिमाग में आया कि वह जंगल जाकर ईंधन के लिए लकड़ी काट लाये। उसकी माँ ने उसके लिए बढ़िया ख़ाना और शराब की एक बोतल साथ में दी जिससे वह काम के बीच ताजा हो सके। जब वह जंगल पहुँचा तो एक बूढ़े आदमी ने उसे सुप्रभात कहा, फिर बोला, “मुझे बहुत भूख और प्यास लगी है, क्या तुम अपने खाने में से थोड़ा-सा मुझे दोगे?” उस होशियार युवक ने कहा, “तुम्हें अपना खाना और शराब दूँ? जी नहीं, यह मेरे लिए भी पूरा नहीं होगा ।” और चला गया। उसने पेड़ काटना शुरू किया पर अभी ज्यादा देर काम किया भी नहीं था कि उसका वार चूक गया और उसने खुद को घायल कर लिया। उसे घर लौटना पड़ा ताकि घाव की मरहम-पट्टी करवा सके। ये गड़बड़ी उस बूढ़े आदमी की शैतानी से हुई थी।

अगली बार दूसरा बेटा- काम के लिए निकला, माँ ने उसके साथ भी खाना पानी दिया; उसे भी वह बूढ़ा मिला । फिर उसने खाने-पीने को माँगा । यह लड़का भी अपने को समझदार मानता था, इसलिए बोला, “जो तुम्हें दूँगा वह कम नहीं हो जाएगा? तुम अपने रास्ते जाओ।” छोटे आदमी ने यह ध्यान रखा कि उसे उसका इनाम मिले। लड़के ने अगला वार जो पेड़ पर किया वह उसकी टाँग पर लगा, उसे भी घर लौटना पड़ा।

अब डमलिंग ने पिता से कहा, “पिताजी, मैं भी लकड़ी काटने जाना चाहता हूँ।” उन्होंने जवाब दिया “तुम्हारे भाई तो लँगड़े होकर आ गए, बेहतर होगा कि तुम घर पर रहो क्योंकि तुम इस बारे में कुछ भी नहीं जानते ।” पर वह जिद करता रहा तो पिता ने कहा, “जाओ, चोट खाओगे तो अक्ल आ जाएगी ।” उसकी माँ ने उसे सूखी डबलरोटी और एक खट्टी बीयर दी। तब वह जंगल में गया तो उसे भी बूढ़ा आदमी मिला जिसने इससे खाना-पानी माँगा। डमलिंग बोला, “मेरे पास तो सिर्फ सूखी डबलरोटी और खट्टी बीयर है। अगर यह तुम्हें ठीक लगे तो हम मिलकर खा लेंगे। वे बैठे, जब लड़के ने खाना निकाला तो सूखी डबलरोटी की जगह बढ़िया खाना और खट्टी बीयर की जगह बढ़िया शराब थी। उन्होंने पेट-भर कर खाया। जब ये निकट गए तो बूढ़े ने कहा, “तुम बड़े दयालु हो। तुमने मेरे साथ सब कुछ बाँटा, मैं तुम्हें वरदान देता हूँ। वहाँ एक पुराना पेड़ है। उसे काटो, उसकी जड़ में तुम्हें कुछ मिलेगा ।” फिर उसने लड़के से विदा ली और चला गया।

डमलिंग काम में लग गया। उसने पेड़ काटा, जब पेड़ गिरा तो जड़ के नीचे की खोखली जगह में शुद्ध सोने के पंखों वाला एक हंस मिला। लड़के ने उसे उठा लिया। वह रात बिताने के लिए एक सराय में ठहर गया। सराय के मालिक की तीन बेटियाँ थीं। उन्होंने जब हंस को देखा तो उसे अच्छी तरह देखने जाने को बेचैन हो उठीं। वे उसका एक पंख उखाड़ना चाहती थीं। सबसे बड़ी बोली, “मैं उखाड़ती हूँ।” वह उसके घूमने का इन्तजार करती रही, फिर हंस को उसके पंखों से पकड़ लिया, पर जब हाथ हटाने की कोशिश करने लगी तो ताज्जुब में पड़ गई क्योंकि वह तो जैसे पंखों से चिपक ही गई। तभी दूसरी बहिन आई, वह भी एक पंख लेना चाहती थी, पर जैसे ही उसने अपनी बहिन को छुआ वह उससे चिपक गई। तीसरी आई वह भी पंख लेना चाहती थी, पर दोनों बहनें चिल्लाई, “दूर रहो, भगवान के लिए दूर रहो।” उसकी समझ में ही नहीं आया कि वे दोनों क्या कहना चाह रही हैं। उसने सोचा, “अगर ये दोनों यहाँ हैं तो मैं भी यहीं जाती हूँ और वह उधर ही चली गई, पर बहिनों को छूने की देर थी कि वह भी हंस के साथ वैसे ही चिपक गई जैसे उसकी बहिनें चिपकी थीं। वे सारी रात हंस के साथ रहीं।

अगली सुबह डमलिंग ने हंस को बगल में दबाया और चल दिया। वे तीनों बहिनें हंस के साथ चिपकी थीं पर उसने ध्यान ही नहीं दिया, वह जहाँ जाता, जितनी तेज जाता, उन्हें भी जाना पड़ता था चाहे वे चाहें या नहीं क्योंकि वे चिपकी थीं।

जाते-जाते उन्हें खेत के बीच एक पादरी मिला। उसने जब यह कतार जाती देखी तो लड़कियों से बोला, “तुम्हें मैदान के बीच से एक युवक के पीछे इस तरह भागते हुए शरम नहीं आती? क्या यह ठीक है?” और उसने सबसे छोटी लड़की का हाथ पकड़ा ताकि उसे खींचकर रोक ले, पर वह तो खुद भी चिपक गया। अब कतार में लड़कियों के बाद पादरी भी जुड़ गया। उधर से पादरी का मुंशी निकल रहा था। उसने जब अपने मालिक को तीन लड़कियों के पीछे भागते देखा तो वह ताज्जुब में पड़ गया और चिल्लाकर पूछने लगा, “मालिक, इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हैं? आज तो किसी के घर नामकरण करने जाना है।” जवाब न मिलने पर उसने दौड़कर पादरी का चोगा पकड़ लिया जिससे उसे रोक ले, पर वह भी चिपक गया। अब ये पाँचों एक-दूसरे से चिपके हुए भागे जा रहे थे। तभी इन्हें काम से लौटते हुए दो मजदूर दिखे जो फावड़े लिये हुए थे। पादरी चिल्लाया, “मुझे छुड़ा दो ।” पर छूने की देर थी कि वे दोनों भी चिपक गए। अब ये सातों डमलिंग और उसके हंस के पीछे दौड़ रहे थे।

आखिर वे एक ऐसे शहर में पहुँचे जहाँ के राजा की केवल एक बेटी थी और वह भी बिल्कुल उदास हो गई थी। कोई उसे हँसा नहीं पा रहा था। यहाँ तक कि राजा ने सब तरफ यह एलान करवा दिया कि जो उसे हँसा पाएगा, उससे उसकी शादी कर दी जाएगी। यह बात सुनकर वह युवक अपने हंस और उसकी कतार के साथ उसके सामने गया। जैसे ही राजकुमारी ने सातों को एक दूसरे से चिपके हुए और एक-दूसरे के पीछे भागते हुए देखा तो वह ऊँची आवाज में हँस पड़ी और देर तक हँसती रही। राजा के वचन के अनुसार डमलिंग और राजकुमारी की शादी हो गई, वह राजा का वारिस बना और बहुत साल तक अपनी पत्नी के साथ खुशी की जिन्दगी जीया।

(ग्रिम ब्रदरज़)

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साभारः लोककथाओं से

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